
राजस्थान में डॉक्टरों ने किया राईट टू हेल्थ का विरोध, अस्पतालों में पसरा रहा सन्नाटा
राइट-टू-हेल्थ बिल के विरोध में शनिवार, 11 फरवरी को अजमेर सहित राजस्थान के सभी प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों की हड़ताल रही। प्रदेशभर में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई। आपातकालीन सेवाएं भी नहीं चली। निजी और सरकारी अस्पतालों में जिन मरीजों का ऑपरेशन होना था, उनके ऑपरेशन टाल दिए गए। इमरजेंसी में भी मरीजों को उपचार के लिए इधर- उधर भटकना पड़ा। लोग बच्चों और बुजुर्गों को तत्काल उपचार के लिए डाक्टरों के घर-घर चक्कर लगाते देखे गए पर वहां भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी।
राइट-टू-हेल्थ बिल
सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के डॉक्टरों की संस्थाओं और एसोसिएशनों ने 11 फरवरी को हड़ताल की पहले ही घोषणा कर दी थी। लेकिन सरकार की ओर से हड़ताल को टालने के कोई प्रयास नहीं हुए। सरकार के प्रतिनिधियों का कहना है कि राइट-टू-हेल्थ बिल आम जनता के लिए लाया जा रहा है। कई बार देखा गया है कि जख्मी मरीजों का इलाज प्राइवेट अस्पतालों में पैसे के अभाव में नहीं होता। सरकार की इच्छा है कि किसी भी अस्पताल में जरूरतमंद मरीज का इलाज पहले हो और फिर शुल्क की बात हो। चूंकि चिकित्सा प्राप्त करना हर आदमी का अधिकार है, इसलिए राइट-टू-हेल्थ बिल लाया जा रहा है।
चिकित्सक स्वतंत्र होकर मरीज का इलाज नहीं कर सकता
सरकार का कहना है कि इस बिल के आने से प्राइवेट अस्पतालों में लूट खसोट पर भी लगाम लगेगी। वहीं प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि यदि कड़े प्रावधानों वाला बिल कानून बनता है तो फिर अस्पतालों का संचालन मुश्किल हो जाएगा। प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि यदि हर व्यक्ति अस्पताल में आकर निशुल्क इलाज करवाएगा तो फिर अस्पताल कैसे चलेंगे।

चिकित्सकों का कहना है कि इस बिल में ऐसे प्रावधान किए गए हैं, जिनमें कोई भी चिकित्सक स्वतंत्र होकर मरीज का इलाज नहीं कर सकता। चिकित्सकों का कहना है कि कोई भी चिकित्सक मरीज के प्रति लापरवाही नहीं दिखाता। हर मरीज का इलाज पूर्ण जिम्मेदारी के साथ किया जाता है। लेकिन फिर भी कई अवसरों पर मरीज को नहीं बचाया जा सकता। ऐसे में मरीज की मौत के लिए डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं है।
चिकित्सकों ने यह भी कहा कि प्राइवेट अस्पताल सरकार की चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना और आरजीएचएस योजना में निर्धारित दरों पर मरीजों का इलाज कर रहे हैं तब राइट-टू- हेल्थ के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों पर शिकंजा नहीं कसना चाहिए। प्राइवेट अस्पताल सरकार के साथ मिलकर प्रदेश के लोगों का इलाज करने को इच्छुक है। असल में डॉक्टरों और सरकार के बीच की लड़ाई में प्रदेश के मरीजों को खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।