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UN के मंच पर भारत की बेटी पूर्णिमा बोहरा ने लहराया परचम, सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार से हुईं सम्मानित

Delhi. भारत की एक बेटी ने संयुक्त राष्ट्र के सर्वोच्च पर्यावरण पुरस्कार से सम्मानित होकर पूरे देश को गौरवान्वित कर दिया है। पूर्वोत्तर के राज्य असम की रहने वाली जीवविज्ञानी डॉ पूर्णिमा देवी बर्मन को इस साल का चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड दिया गया है। दी न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ पूर्णिमा देवी बर्मन का चयन इस साल के ‘चैंपियंस ऑफ द अर्थ’ अवार्ड के लिए किया गया है। ये संयुक्त राष्ट्र का सर्वोच्च पर्यावरणीय सम्मान है। गौरतलब है कि नागरिकों को पारिस्थितिकी तंत्र के क्षरण को रोकने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में परिवर्तनकारी कार्रवाई के लिए ये अवॉर्ड दिए जाते हैं।

एंटरप्रेन्योरियल विजन श्रेणी में मिला अवार्ड

जीवविज्ञानी पूर्णिमा देवी बर्मन को एंटरप्रेन्योरियल विजन श्रेणी में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) 2022 चैंपियंस ऑफ द अर्थ अवार्ड से सम्मानित किया गया है। पूर्णिमा “हरगिला आर्मी”  का नेतृत्व करती हैं। इसका मकसद ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क को विलुप्त होने से बचाना है।
ग्रेटर एडजुटेंट स्टॉर्क को समर्पित इस संगठन में केवल महिलाएं ही काम करती हैं। जमीनी स्तर पर हो रहा वन्यजीव संरक्षण का काम आंदोलन का रूप ले चुका है। महिलाएं वस्त्र बनाती और बेचती हैं, इन कपड़ों पर पक्षी का रूपांकन होता है, जिससे जागरूकता बढ़ाने में मदद मिलती है। इस पहल से इन महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता भी मिलती है।

पूर्णिमा बताती हैं कि Greater Adjutant Stork को समर्पित Hargila Army का मकसद पक्षियों की प्रजातियों के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। स्थानीय महिलाओं को साथ जोड़ने से काफी मदद मिलती है। रिपोर्ट के मुताबिक पूर्णिमा गुवाहाटी स्थित संस्था बर्मन एविफौना अनुसंधान और संरक्षण प्रभाग, आरण्यक में वरिष्ठ परियोजना प्रबंधक भी हैं।

पांच साल की उम्र में दादी के साथ रहने ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर गई थीं पूर्णिमा

UN Environment Programme (UNEP) की वेबसाइट पर प्रकाशित सूचना के मुताबिक महज पांच साल की उम्र में पूर्णिमा बर्मन को असम में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर अपनी दादी के साथ रहने के लिए भेज दिया गया था। उन्होंने कहा, “अपने माता-पिता और भाई-बहनों से बिछड़ने के बाद बचपन की पूर्णिमा गमगीन हो गई। ऐसे में ध्यान बंटाने का बीड़ा दादी ने उठाया। वहीँ उन्होंने सारस और पक्षियों की कई अन्य प्रजातियों को देखा। उनकी दादी ने उन्हें पक्षियों से जुड़े गीत सिखाए. बगुले और सारस के बीच में रहते-रहते Purnima Devi Burman ने इनके कंजर्वेशन के लिए काम करने की सोची। हरगिला को बचाने के प्रयास में पूर्णिमा की पीएचडी भी छूटी और उन्होंने कैंपेन में महिलाओं को जोड़ा, जो आसान नहीं था। जागरुकता बढाने के उद्देश्य से कुकिंग फेस्टिवल मनाए। संरक्षण अभियान से लोगों को जोड़ने के लिए धार्मिक कार्यों से लेकर खाना पकाने की प्रतियोगिताओं, नुक्कड़ नाटकों और सामुदायिक नृत्यों के दौरान संरक्षण संदेश प्रस्तुत करना इत्यादि शामिल रहा। धीरे-धीरे कर हरगीला आर्मी बढती गई और आज दस हज़ार से महिलाएं इस अभियान से जुडी हैं।

कई अवॉर्ड से नवाजी गई हैं पूर्णिमा

बर्मन भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद द्वारा प्रस्तुत 2017 नारी शक्ति पुरस्कार ( भारतीय महिलाओं के लिए सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार) से नवाजी जा चुकीं हैं। इसके अलावा 2017 में, यूनाइटेड किंगडम की राजकुमारी रॉयल ऐनी द्वारा उन्हें व्हिटली पुरस्कार (जिसे ग्रीन ऑस्कर भी कहा जाता है) प्रदान किया जा चूका है। पूर्णिमा देवी बर्मन को कंजर्वेशन लीडरशिप प्रोग्राम (सीएलपी) से लीडरशिप अवार्ड 2015, फ्यूचर कंजर्वेशनिस्ट अवार्ड 2009, संयुक्त राष्ट्र से यूएनडीपी इंडिया बायोडायवर्सिटी अवार्ड 2016 भी मिल चुका है। रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड आरबीएस “अर्थ हीरो अवार्ड” 2016, 2017 में बीएसएनएल से भारत संचार रोल ऑफ़ ऑनर 2017, 2016 में बालीपारा फाउंडेशन “ग्रीन गुरु अवार्ड” और 2017 में उत्तर पूर्व से एफआईआईसीआई एफएलओ महिला अचीवर पुरस्कार भी इन्हें प्राप्त हुआ है।

 

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