
नेपाल के राजनीतिक हलकों में एक मशहूर कहावत है कि नई दिल्ली में बारिश होने पर काठमांडू में लोग छाता का उपयोग करते हैं। इसका मतलब यह होता है कि नेपाली राजनीति पर भारत का महत्वपूर्ण प्रभाव रहा है। भारत में पिछले आठ साल से हिन्दूवादी पार्टी भाजपा के सत्ता में आने के बाद प्रगतिशील नेपालियों के बीच यह आशंका है कि क्या नेपाल में हिंदुत्व की हवा सीमा पार से बह रही है।

नेपाली अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक नेपाल में राजनीतिक दल हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाकर हिंदू वोट पाने की कोशिश करेंगे। यहां बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली सत्ता के आखिरी दिनों में हिंदुत्व के मुद्दे को भुनाने की कोशिश कर थे।
नेपाल के राजनीतिक विश्लेषक भास्कर गौतम के मुताबिक नेपाल के आगामी चुनाव में धार्मिक एजेंडे को प्राथमिकता मिल सकती है। गौतम ने कहा कि ” यह देखते हुए कि हिंदुत्व का पालन करने वाली पार्टी भारत में सत्ता पर काबिज है, इसका नेपाल की राजनीति पर असर पड़ सकता है।” उन्होंने कहा कि यह मुमकिन है कि उम्मीदवार इस चुनावी चक्र में धार्मिक भावनाओं को भुनाने की कोशिश करेंगे।

जैसा कि नेपाली संविधान में धर्मनिरपेक्षता निहित है और कोई भी तर्क दे सकता है कि कानून का समर्थन करने वाले नेताओं को राजनीतिक फायदे के लिए धार्मिक भावनाएं का शोषण करने का फायदा नहीं होगा लेकिन धार्मिक कार्यक्रमों में नेपाली नेताओं की बढ़ती दिलचस्पी ने विश्लेषकों को यह अनुमान लगाने को विवश कर दिया है कि नवंबर के चुनाव में नेपाल में हिंदू राष्ट्रवाद एक मुद्दा बन सकता है।
नेपाल में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी पहले से ही देश को हिंदू राष्ट्र में वापस लाना चाहता है। साथ ही राजशाही बहाल करने की वक़ालत करती रही है।

काठमांडू पोस्ट के स्तंभकार व राजनीतिक विश्लेषक सी के लाल ने कहा कि नेपाल में हिंदुत्व के मुद्दे पर सभी राजनीतिक दल एक नाव में सवार हैं और हिंदुत्व के मुद्दे को उसी तरह भुनाने की कोशिश करेंगे, जिस तरह हमने भारत के हालिया चुनाव में देखा है। लाल ने कहा कि भले ही इस बात की संभावना हो कि चुनाव के दौरान हिंदू धर्म एक एजेंडा होगा, यह एक महत्वपूर्ण कारक नहीं होगा।

भास्कर गौतम ने कहा कि नेपाल में पांच पार्टियों का गठबंधन सत्ता पर काबिज है और आगामी चुनाव मिलकर लड़ने की घोषणा कर चुका है। गठबंधन में शामिल सभी दल सीट बंटवारे को अंतिम रूप देने में लगे हुए हैं। वहीं सीपीएन-यूएमएल रूढ़िवादी वोटों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने कहा कि यूएमएल रुढ़िवादी ताक़तों से हाथ मिलाएगा, जिनका मुख्य एजेंडा हिंदू राष्ट्रवाद है। यूएमएल राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी), राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी- नेपाल (आरपीपी-एन) के साथ चुनावी समझौता करने की कोशिश कर रही है। दोनों पार्टियां हिंदू राष्ट्रवाद में विश्वास करती हैं और राजशाही की वकालत करती रही हैं।
पिछले साल केपी शर्मा ओली ने चितवन में यह कहकर सुर्खियां बटोरी थी कि भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ है। ओली ने अधिकारियों को उस स्थान पर राम मंदिर बनाने का भी निर्देश दिया था। कोरोना महामारी के दौरान मंदिर निर्माण के लिए धन आवंटित करने को लेकर केपी शर्मा ओली की काफी आलोचना हुई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घटना आगामी चुनाव में धार्मिक मुद्दों को बढ़ावा देने की ओली की सोची समझी रणनीति का हिस्सा था।
ओली के पशुपतिनाथ मंदिर की छत पर सोने की परत चढ़ाने और गर्भ गृह में चांदी के सामान को सोने से बदलने के फैसले को भी ओली के राजनीतिक फायदे के लिए धर्म को बढ़ावा देने के प्रयास के रूप में माना गया था। ओली ने इस कार्य पर 30 करोड़ रुपए खर्च किया था।
हालांकि सिर्फ ओली ही अकेले व्यक्ति नहीं हैं हो नेपाल में हिंदुत्व को बढ़ावा दे रहे हैं बल्कि सभी राजनीतिक दल हिंदुत्व को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा की पत्नी आरजू राणा ने हाल ही में सोशल मीडिया पर धार्मिक गतिविधियों में भाग लेते खुद की तस्वीर शेयर की है, जिनमें अक्सर देउबा साथ देखे जाते हैं। शायद कभी इस तरह की तस्वीरें पहले कभी पोस्ट की गई हों। इसने अटकलों को और हवा दिया है कि आगामी चुनाव में धार्मिक मामलों को बढ़ावा मिलेगा।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आरजू राणा का धार्मिक झुकाव नया नहीं है। पिछले साल रक्षा बंधन के मौके पर आरजू राणा ने बीजेपी के विदेश मामलों के प्रकोष्ठ के संयोजक विजय चौथवाले की कलाई पर राखी बांधी थी। हिंदू परंपरा में बहनें रक्षाबन्धन के मौके पर अपने भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं।
प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने पिछले अप्रैल में भारत की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान वाराणसी का दौरा किया था। इसी तरह नेपाली कांग्रेस नेताओं ने प्रधानमंत्री के करीबी माने जाने वाले पार्टी के प्रवक्ता प्रकाश शरण महंत के नेतृत्व में भाजपा के साथ संबंधों को मजबूर करने के लिए भारत की यात्रा की थी।
सीपीएन (माओवादी सेंटर) के अध्यक्ष पुष्पकमल दहल प्रचंड भी अपनी पार्टी के मज़बूत रिश्ते बनाने के लिए भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा के निमंत्रण पर भारत आए थे। नेपाल में चूंकि कांग्रेस और माओवादी गठबंधन की सरकार है, इसलिए राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि भारत सरकार का नेतृत्व करने वाली पार्टी के साथ प्रचंड के रिश्ते को सामान्य रूप से लिया जाना चाहिए।

राजनीतिक विश्लेषक श्री कृष्ण अनिरुद्ध गौतम ने कहा कि पार्टी टू पार्टी कनेक्शन अकेले नेपाल में धार्मिक धुर्वीकरण को बढ़ावा नहीं दे सकते हैं लेकिन भारत की राजनीति के हालिया रुझान, जैसे कि मुस्लिम आबादी का दमन और हिंदुत्व को बढ़ावा देना हमारी राजनीति पर असर डाल सकते हैं।
नेपाल को 2006 के अंतरिम संविधान में एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था, जिसमें हिंदू राजतंत्र को इतिहास में शामिल किया गया था और इसे 2015 के संविधान में पुष्टि की गई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तकरीबन 80 फीसदी नेपाली धर्म में आस्था रखते हैं। इसलिए यह चुनाव हिंदुत्व पर लड़कर जीता जा सकता है और सभी पार्टियों की नज़र इस पर है।

गौतम ने कहा कि चूंकि हमारे अधिकांश राजनीतिक दल खुले तौर पर धर्म को अपने एजेंडे में शामिल नहीं करते हैं, इसलिए यह कहना जल्दबाजी होगी कि वे लोगों की धार्मिक भावनाओं को वोट में बदलने की कोशिश करेंगे। हालांकि गौतम यह भी मानते हैं कि अगर राजनीतिक दलों को भारत की तरह हिंदुत्व से फायदा मिलता है तो वे हिंदू राष्ट्रवाद को अपने राजनीतिक एजेंडे के रूप में अच्छी तरह से शामिल कर सकते हैं।


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