क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की कार्यशाला में वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग एवं मैनेजमेंट के सिखाए गुर

एनसीआर टाईम्स, जयपुर। राष्ट्रीय जल जीवन मिशन के तहत जयपुर में आयोजित की जा रही दो दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन रसायनज्ञों को जल गुणवत्ता प्रबंधन के गुर सिखाए गए। क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित इस कार्यशाला में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में पानी की गुणवत्ता बनाए रखने की जिम्मेदारी संभालने वाले 30 रसायनज्ञों को विभिन्न तकनीकों के बारे में प्रशिक्षित किया जा रहा है।
कार्यशाला को सम्बोधित करते हुए मुख्य अभियंता (गुणवत्ता नियंत्रण) केडी गुप्ता ने कहा कि प्रदेश में पानी की गुणवत्ता बनाए रखने में एनएबीएल अप्रूव्ड प्रयोगशालाओं की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन का क्रियान्वयन राजस्थान जैसे भौगोलिक परिस्थितियों वाले राज्य के लिए काफी चुनौतिपूर्ण है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस कार्यशाला में सीखी गई बातें रसायनज्ञों के लिए काफी लाभदायक होंगी।

कार्यशाला के पहले दिन क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया के ट्रेनिंग एवं कैपेसिटी बिल्डिंग सेल के डायरेक्टर श्री आलोक जैन ने वाटर क्वालिटी-चुनौतियां एवं टेस्टिंग लैब का महत्व तथा वाटर क्वालिटी मॉनिटरिंग पैरामीटर्स पर प्रतिभागियों को जानकारी दी। वॉटर क्वालिटी एक्सपर्ट श्री नीरजकांत पाण्डे ने आईएसओ/आईईसी 17025 वर्जन के बारे में प्रतिभागियों को विस्तार से जानकारी दी।
मुख्य रसायनज्ञ एच एस देवन्दा ने बताया कि एनएबीएल अप्रूव लैब में सैम्पल जांच के परिणाम एक्यूरेट होते हैं। इससे प्रमाणिकता में वृद्धि होती है और पानी की गुणवत्ता में सुधार होता है। उन्होंने कहा कि दो दिवसीय इस प्रशिक्षण कार्यशाला में रसायनज्ञों की क्षमता संवर्धन के साथ ही उन्हें जल गुणवत्ता निगरानी के लिए अपनाई जा रही विभिन्न तकनीकों के बारे में जानकारी दी जाएगी।

यूनिसेफ के वॉश ऑफिसर नानक संतदासानी ने कहा कि राजस्थान का जलदाय विभाग पानी की गुणवत्ता बनाए रखने में काफी अच्छा कार्य कर रहा है। उन्होंने शुद्ध एवं गुणवत्तापूर्ण जल हर घर तक पहुंचाने में पूरे सहयोग का आश्वासन दिया। उल्लेखनीय है कि प्रदेश में पानी की गुणवत्ता जांच के लिए 33 प्रयोगशालाएं कार्यरत हैं इनमें एक राज्य स्तर पर बाकी जिलों में स्थापित की गई हैं। ये सभी प्रयोगशालाएं अंतर्राष्ट्रीय मानक पर एनएबीएल द्वारा मान्यता प्राप्त हैं। इन टेस्टिंग लैब के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले पेयजल की गुणवत्ता की जांच रसायनज्ञों द्वारा की जाती है।

