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भारत और चीन सस्ता तेल खरीदकर रूस की कर रहे हैं मदद

यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर काफ़ी कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाने का एलान किया। इससे अपनी अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए रूस को नए उपायों की तलाश करने को मजबूर होना पड़ा।

रूस को अपने बहुत बड़े तेल और गैस उद्योग के लिए नए ग्राहकों की तलाश करनी पड़ी। इसका नतीज़ा यह हुआ कि अब चीन के तेल और गैस का मुख्य सप्लायर सऊदी अरब नहीं रूस बन गया है। क्रेमलिन (रूस की सरकार) ने कथित तौर पर चीन को अपने तेल और गैस की क़ीमतों में छूट देने की पेशकश की। इससे उसे अपने उत्पादों के लिए नए बाज़ार खोजने में मदद मिली। रूस ने अपने तेल और गैस बेचने के लिए भारत से भी संपर्क किया। इन वजहों से, तेल और गैस के निर्यात से होने वाली आय घटने के बावजूद ऊर्जा क्षेत्र से अभी जो आमदनी हो रही है, वो यूक्रेन में हो रही सैन्य कार्रवाई सहित अन्य चीज़ों के लिए पर्याप्त है।

सस्ता तेल और गैस

चीन से मिले आंकड़ों के अनुसार, रूस से हो रहे कच्चे तेल का आयात ​मई में बढ़कर 84.2 लाख टन के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया. इसमें ईस्ट साइबेरियन पैसिफिक ओशन पाइपलाइन से आने वाला कच्चा तेल भी शामिल है। इस तरह, पिछले साल की तुलना में मई में रूस से कच्चे तेल के आयात में 55% की वृद्धि हुई है। चीन की सरकारी कंपनियों जैसे सिनोपेक और झेनहुआ ऑयल ने पिछले कुछ महीनों में पहले से कहीं ज़्यादा कच्चा तेल ख़रीदा है। रूस ने इन कंपनियों को कच्चे तेल की क़ीमतों पर काफ़ी रियायत दी, क्योंकि यूक्रेन पर हमले के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। उससे पश्चिमी देशों के ख़रीदार रूसी तेल और गैस की ख़रीद से दूर हो गए। बदले हालात में सऊदी अरब अब रूस के बाद चीन का दूसरा बड़ा तेल निर्यातक हो गया है। मई में सऊदी अरब ने चीन को 78.2 लाख टन तेल की आपूर्ति की। हालांकि ऐसा नहीं है कि चीन आ​र्थिक प्रतिबंध झेलने वाले देशों में से केवल रूस से ही तेल ख़रीद रहा है। इस सूची में ईरान भी शामिल है। गत सोमवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, चीन ने मई में ईरान से 2.60 लाख टन कच्चे तेल की ख़रीद की. दिसंबर के बाद ईरान से यह तेल का तीसरा सौदा है।

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